Kabir Doha by Meena Patel



सुमिरन बिन अवसर जात चली ॥ टेक ॥ 

बिन माली जस बाग सूखि गै, सींचे बिन कुम्हिलात कली ॥१॥ 

छमा सँतोष जबै तन आवै, सकल ब्याध तब जात टली ॥२॥ 

पाँचो तत्त बिचारि के देखो, दिल की दुरमति दूर करी ॥३॥ 

कहै कबीर सुनो भाइ साधा, सकल कामना छोड़ि चली ॥४॥


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